ब्लॉग मैनिफेस्टो

यह ब्लॉग किसी भी तरह से इस समय (देश और काल) से कटा हुआ नहीं है. अगर ऐसा लगता है, तो यह मात्र भ्रम है. सतह से देखने पर इसके जिन रूपाकारों को आप चिन्हित कर पा रहे हैं, वह भले ही प्रचलित अर्थों में किसी भी तरह से किसी पक्ष को न रखकर व्यक्ति की इच्छाओं और उसके अनुभवों को प्रकट करता दिख रहा है, लेकिन यही इसकी ताकत है. जब सब मिलकर इस वक़्त व्यक्ति का दोहन करने में लगे हुए हैं, उसकी आदत, व्यवहार, इच्छाओं, कल्पनाओं को ठोस या तरल मूर्त या अमूर्त रूप में एक ही साँचे में ढालने की फ़िराक में घात लगाकर बैठे हों, तब यह उन पूँजीवादी नवउदारवादी धारा के विपरीत जाकर बारीक होने की लड़ाई लड़ने में ख़ुद को व्यस्त कर लेना है. 

यह ब्लॉग और यह लेखक इस लेखन को सकर्मक क्रिया के रूप में लेता है और किसी भी तरह से यहाँ कही बात के लिए अपने तार्किक, अतार्किक, भावुक, संवेदनशील, खुरदरे, अड़ियल आधारों के साथ उपस्थित है. यदि आपको ऐसा नहीं लगता और यहाँ दर्ज किसी भी बात से असहमति है तो कृपया उसे ज़रूर बताएं. 

यह इस समय में ख़ुद को बचाए रखने और एक समझ में न आने वाले प्रतिपक्ष को मजबूत करने की छोटी-सी कोशिश भर है. विरोध खोखला है, इसलिए लिख रहा हूँ. वैसे ग़ालिब भी क्या ख़ूब कह गए हैं: 
“बस के दुशवार है हर काम का आसां होना
  आदमी को भी मयस्सर नहीं  इंसां होना”
इस भ्रष्ट होती गयी दुनिया में बस एक ही काम मतलब का बचा है. लिखना. जिसको थोड़ा बहुत अपने अन्दर बचाए रखने की जद्दोजहद में यहाँ वापस लौट आया. यह कठफोड़वे की तरह अपने अन्दर संभावनाओं को बचाए रखना है. यह वक़्त बदले न बदले हम बदल रहे हैं. बह नहीं रहे. खड़े हैं. देख रहे हैं. ख़ुद अपने मुखौटे बचाने के लिए हमने लिखने को चुना है. अब इसी लिखे से अपने पते को दुरुस्त करते चल रहे हैं. इसकी ओट में छिपकर कुछ देर साँस लेने के मौके बनाने की ज़िद हमें बचा ले जायेगी. बचना जिंदा रहने से कुछ जादा है.

इस तरह लिखना कहीं चले जाने से पहले अपने पते को दुरुस्त करने की हारी हुई लड़ाई है.

उदय प्रकाश कहीं अपनी किताब ‘.. और अंत में प्रार्थना’ के पेज नंबर सत्रह पर दम ठोंक कर कहते हैं, “क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे समय में अपने नितांत एकान्तिक और निपट अकेले अनुभवों को व्यक्त करना इस पूँजीवादी समूहवाद का सार्थक प्रतिकार है”. उदय प्रकाश को आप भले कैसा भी लेखक मानते हों, उनकी बात में दम है. दम नहीं है, बात में सैंकड़ों दीमक लगी हैं, तो एन्टीथीसिस लाईये. बात करेंगे. बात होगी, तब बात बनेगी.

फ़िर मुझे लगा मोहब्बत वह मुकाम है, जो इस प्रतिपक्ष के लिए सबसे मजबूत आधार होगा. इसलिए ख़तों की अपनी दुनिया बनाने में जुट गया. ख़त बेनामी हैं. मतलब आप सबके नाम हैं. इसलिए ज़रा बचकर.

{तीन जुलाई, दो हज़ार सोलह की बादलों से घिरी इतवार की ढलती हुई शाम, करीब पौने छह बजे }

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

खिड़की का छज्जा

एकांत सा

सहूलियत

काश! छिपकली

सिक्के जो चलते नहीं

ईर्ष्या

छूटना