नये शेखर की जीवनी : कुछ शुरवाती नोट्स
असद ज़ैदी द्वारा संपादित 'जलसा', अंक चार (साल २०१५) में जब पहली बार अविनाश के गद्य के रूप में 'नए शेखर की जीवनी' के कुछ हिस्से प्रकाशित हुए, तब उन्हें वहाँ 'आत्मकथात्मक' कहा गया था । वहां पढ़ने वाले को वह किसी युवा कवि की डायरी के हिस्से लगे होंगे । मुझे नहीं पता था, यह किसी उपन्यास कही जाने वाली विधा के हिस्से होने जा रहे थे । जैसे कि अविनाश इसे एक प्रयोग मान रहे हैं, इसकी आलोचना या समीक्षा के लिए भी हमें नए प्रयोगों को करने की ज़रूरत है । ऐसा नहीं है, डायरी शैली में पहले उपन्यास नहीं लिखे गए होंगे । अगर उनसे इस विधा को समझने के सूत्र मिलते हैं, हमें उनका लाभ उठाना चाहिए । यहाँ जो भी बात मेरे हिस्से से कही जा रही है, उसे एक समकालीन कवि पर कही टिप्पणी ज़्यादा माना जाये । मैं सिर्फ़ पाठक की हैसियत से अपनी बात कहना चाहता हूँ । इससे अधिक मानने वाले इसे कुछ भी मान सकते हैं । सतही । उथली । अपरिपक्व । दृष्टिहीन । मारक । तीक्ष्ण । सहज । सरल । कुछ भी । इस कृति को पढ़ते हुए लगता है, यह डायरी में कही गयी एक जीवनी है । जो जीवनीकार है, उसके पास इतना अवकाश नहीं है कि वह फुर्