दोनों
जबसे लौटा हूँ, तुम दोनों पर लिखना टाल रहा हूँ। पता नहीं ऐसा क्या कह देना चाहता हूँ, जो कहा नहीं जा रहा? कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी । बहुत सारी छोटी-छोटी बातें होंगी । वह उस गाँव की तरह ठहरी होंगी, जहाँ इन दिनों तुम रह रहे हो । उसे उदासी नहीं कहूँगा । वह उदासी के करीब तो है, पर उदास नहीं है । वह एकांत जैसा कुछ है । तुम जब बाहर होते हो, तब वह घर के अंदर ही नहीं अपने अंदर उन सवालों को ढूँढ रही होती हैं । मैं इन अंदर जाती साँसों को पहले इतना नहीं महसूस कर पाता । जब अकेला था, तब तो बिलकुल भी नहीं । जब हम दो हुए तब मुझे समझ आया, जितना हम दोनों बाहर दिखते हैं, उससे अनुपात में कई गुना अपने अंदर खुद को बुन रहे होते हैं । इसमें धागा न चिटक जाए, इसका ध्यान रखना होता है । बहरहाल । कोई एक-दूसरे में कितना डूब सकता है, यह पहली बार मैंने अपने इतनी पास देखा । इसे तुम्हारे शादी के साल तो बिलकुल भी महसूस नहीं कर सकता था । यह भी एक गुण है । धीरे-धीरे हमारे अंदर विकसित होता है । वक़्त लगता है । पर हो जाता है । मेरे मन में तो था, इस बार हमारी न हो पायी बातों पर लिखता । पर नहीं । जब तुम घर पर नहीं थे ।