तीन ड्राफ्ट बाद
कल से तीन बार ड्राफ्ट कर चुका हूँ पर समझ नहीं पा रहा, क्या है, जिसे कहने का मन है? वह कैसे इस कहने में आ नहीं पा रहा. कोई बात कभी-कभी वक़्त लेती होगी. जैसे उसे शब्दों की कोई दरकार नहीं है. पर वह कुछ इस तरह की है, जो एक बार कह दी जाए, तो बढ़िया होगा. फ़िर लगता है, एक नहीं, कई सारी बातें होंगी. गड्डमड्ड सी. यहाँ उन्हें सिलसिलेवार कहने की कोई कोशिश नहीं होने वाली. उतना कह पाना ठीक भी नहीं है. कई ऐसे हैं, जो अपनी कतरनें नहीं दिखाते, कहते हैं 'पसर्नल' है. हमारे सामने कोई ऐसी बात कहे और चला जाये, होता नहीं है. पर क्या करें कभी-कभी हो भी जाता है. कुछ हैं, जिन्हें छोड़ देते हैं. होगा कोई, जो नहीं कहना चाहता. मैं, उस तस्वीर के होंठों के असुंदर और उनके मुलायम न होने पर जो भाव घर कर जाता है, वह किसी को कैसा होता होगा? यह सोच रहा हूँ. क्या इसीलिए उसने इस तस्वीर को ही चुना? क्या वह ऐसा करके किसी को अपनी तरफ़ खींच सकने वाले ताप से भरी हुई है. ऐसा उसे लगता होगा. वह चाहकर भी उन छवियों से बाहर नहीं निकल पायी. हम नहीं चाहते होंगे, तब भी ऐसे हो जाते होंगे कभी. फ़िर वह दूसरी तस्वीर, जिसमें घुट