आज की तारीख, उनतीस फरवरी
आज उनतीस फरवरी है। यह दिन भी और दिनों की तरफ बीत रहा है। इसमें ऐसा कुछ भी खास नहीं है, जिससे कल और आज में कुछ मूलभूत अंतर दिख रहा हो। बस एक तारीख है, जो चार साल में एक बार आती है। कल से ही इस दिन की पिछली किश्तों में वापस लौट रहा था। कोई भी याद ऐसी नहीं जिसे कभी याद किया हो। चार साल पहले भी पढ़ रहा था आज भी पढ़ रहा हूँ। दुनिया न तब बेहतर थी न उससे पहले। यह दुनिया हम जैसे नकारा लोगों से भरती रही है। हद दर्जे के आलसी हैं। बस खुद को पहचानने में देर बहुत कर देते हैं, और कुछ नहीं। मैंने भी सोचा आज कुछ अलग 'फ़ील' करूँ। जैसे सब करने की करते हैं। कोशिश करके भी नहीं कर पा रहा। कुछ अलग-सा हो तो करूँ न। जब कुछ नहीं होता, तब ऐसे ही बैठा होता हूँ। मौसम गरम होता जा रहा है। पीपल के पत्ते पैरों में चमरौन्धे जूते का एहसास दिला रहे हैं। सुबह की ठंड शाम तक आते-आते दोबारा गुलाबी होने की कोशिश में लगी रहती है, पर हो नहीं पाती। रात होगी, और पहर बीतते-बीतते कुछ रजाई के हट जाने से हवा लगने तक पता ही नहीं चलता। सोच रहा हूँ आज के दिन में क्या खास है, जिसे दुनिया अपने पास रख लेना चाहती है। उन्नीस सौ