अधूरी बातें..
उसने कभी कुछ कहा नहीं था. वह चुप था. जो भी कहा अपने भीतर कहा. अपने भीतर सुना. उसके लिए कहना ज़रूरी नहीं था. ऐसा नहीं है. उसकी एक नोटबुक थी. उससे वह सब कुछ कहता. एक दिन कहा, आज अच्छा नहीं लग रहा. उस शाम कुछ ख़ास नहीं हुआ था. बस किसी ने कह दिया, तुम गाते बहुत हो. जबकि उसे गाना बिलकुल पसंद नहीं था. उसका गला मुकेश, रफ़ी के दर्ज़े का तो क्या महेन्द्र कपूर से भी बेसुरा था. उसे मन्ना डे के गाये गीत अच्छे लगते. पर वह उन्हें आज तक गुनगुना भी न पाया होगा. दूसरे किसी दिन उसने पन्ना खाली छोड़ दिया. लिखा आज से ब्लॉग बंद. साल ख़त्म हो रहा था और उसमें सोखने की ताकत भी दिन पर दिन कम होती जा रही थी. वह सीढ़ियाँ चढ़ता तो सीढ़ियों पर थम जाता. सोचता इन माँसपेशियों पर कुछ कहता चलूँ. पर उससे नहीं हुआ. उसका सोखता सूखता चला गया.थक गया. एक शाम ऐसे ही बारिश हो रही थी. खिड़की से बूँदें बौछार बनकर अन्दर तक भिगो गयीं पर उसने इन भीगती बूँदों को छूकर देखा तक नहीं. उसके दिल में खून के साथ अब थोड़ा-थोड़ा पत्थर भी धड़कने लगा था. पत्थर थोड़े गोल थे. थोड़े नुकीले. थोड़े चौकोर ही रह गए थे. उसे कुछ महसूस हो, उससे पहले ही वह आँख