संदेश

जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बाबा

चित्र
तीन दिन तक डायरी में पैन ऐसे ही पड़ा रहा । कुछ लिखते न बना । लिख जाने से भी वह दुख कम हो जाता, ऐसा कह नहीं सकता । यह तब से रिस रहा है । इतवार की सुबह थी । साल का पहला इतवार । पाँच जनवरी । ठीक से साढ़े नौ भी नहीं बजे थे । फोन बजा । बाबा नहीं रहे । इस वाक्य को सुन लेने के बाद कुछ नहीं सूझा । दिमाग शून्य या मृत्युबोध से भर गया हो ऐसा भी नहीं है । हमारे बाबा अब इस दुनिया में नहीं हैं । इसके बाद कुछ चल ही नहीं पाया । अतीत की जैसी भी स्मृतियाँ हमारे पास हों वह इतनी घुली मिली होती हैं, उसमें से किसी पात्र के लिए आप कुछ अलगा पाएँ, ऐसा तुरंत हो पाना तो बिलकुल भी संभव नहीं है । अभी भी ऐसा कुछ कर जाऊंगा, लगता नहीं है । बाबा के साथ के सभी लोग, जैसा सब कह रहे हैं, उनसे छोटे उनसे बड़े, यहाँ तक आते-आते (कबके) उनसे छूट गए इसका कोई ब्यौरा मेरे पास नहीं है । वही बता रहे हैं, कोई नहीं बचा । सब एक-एक करके चले गए । आगरा होते हुए हम पहले लखनऊ पहुंचे । फिर लखनऊ से बहराइच । अभी सुबह हुई नहीं है । साढ़े तीन बज रहे हैं । सब एक तसले में लकड़ी जलाए उसे घेर कर बैठे हुए हैं । सब मतलब दो बड़े भाई । उनके पिता । हमारे ताऊ