थूक वाली ऊँगली
वह कौन लोग हैं और उनकी पहचान कैसे की जा सकती है, जो ऊँगली में थूक लगाकर किताब के पन्ने पलटते हैं? मैं एक को जानता हूँ. आज ही मुलाक़ात हुई है. जानना सिर्फ़ इस बात का है कि उसने मेरी किताब के पन्नों को इस तरह पलटा. उसके पास इसके अलावे और कोई ख़याल क्यों नहीं आया, कहा नहीं जा सकता. पर जितनी तन्मयता के साथ वह किताब पढ़ रहा था, उससे यह बिलकुल भी जज नहीं किया जा सकता कि किताबों को लेकर वह असल में क्या सोचता है? मैं भी कोई फ़िज़ूल दिमाग लगाने वाला नहीं हूँ. बस थोड़ा सोचने लगा. वह ऐसा क्यों कर रहा होगा? शायद किसी ने उसे कभी टोका नहीं होगा. अगर मैं उसके ऐसा करने पर यहाँ बैठकर लिखने बैठ गया हूँ शायद यह एक तरह का टोकना ही होगा. कहीं न कहीं मेरे अन्दर यह बात घर कर गयी होगी के किताबों को थूक वाली ऊँगली से नहीं पलटना चाहिए. इस तरह हम दो अलग-अलग लोग हैं. अगल-बगल बैठे थे. ऐसे लोग ट्रेन, बस, मेट्रो में अकसर मिल जाते हैं, जो कभी किताब तक नहीं पहुँचे होंगे. हो सकता है, उनके लिए किताबें आज तक पढ़ी जाने वाली चीज़ बनकर रह गयी हों. उनके लिए किताबें ख़रीदे जाने वाली इकाई में तब्दील होते-होते पता नहीं कितना और वक़्त