लिखना
मेरे लिए यह लिखना पढ़ना दोनों एक साथ चलने वाली प्रक्रिया की तरह उभरते हुए नज़र आते हैं. ज़रूरी है सरल लिख पाना. कोशिश करता हूँ इसी दुनिया के रूपकों, बिम्बों, चित्रों, आवाजों से कुछ कह पाऊं. कभी कभी कुछ कह पाता होऊँगा. ऐसा मुझे सच में लगता है. कभी कभी नहीं भी लगता है. फ़िर भी लिखना मेरा ज़रूरी काम है. हिंदी में लिखना इसलिए शुरू किया क्योंकि मुझे यही भाषा थोड़ी बहुत आती है. शब्दों के अर्थ भले समझ न आते हों पर उनके प्रयोगों को लेकर थोड़ा बहुत सचेत व्यक्ति ख़ुद को लगता हूँ. जो इस भाषा में नहीं कह पाता उन्हें चित्रों से बुनना सीख रहा हूँ. शब्द भी कठिन नहीं हैं. पर वाक्य की संरचना उन्हें जटिल बनती होगी. यह संरचना ऐसी गति को क्यों प्राप्त हुई, इस पर शोध करने का मन करता है. आपमें से कोई करना चाहे, उसका स्वागत है. जो नहीं करना चाहते, वह बस कुछ न कुछ पढ़ने की आदत बना लें. काम आएगी.
{बीतते हुए साल में. अँधेरे के साथ ठण्ड बढ़ने के दरमियान. शाम सवा छह के बाद. घड़ी देखते हुए. मेज़ पर. सीधे लैपटॉप वर्ड में टाइप करता हुआ. तारीख़ दिसंबर चौबीस. दो हज़ार सोलह.}
bilkul sahi kaha...
जवाब देंहटाएंसही न भी हो, तो भी यही कहा जाएगा। हमेशा..:)
हटाएं