यहां
शाम ख़त्म होने को है। यहां मेरे बगल से दो बंदर गुजर रहे हैं। एक के पीछे एक। शायद दोनों भाई होंगे। दोनों सड़क पार कर गए। एक साथ। मैं यहां आकर एकदम 'मिसफिट' हो गया हूं। जो भी मुझ से मिल रहा है, वह जानना चाहता है, मैं अचानक कैसे आ गया? अगर आया हूं, तब कोई न कोई काम तो ज़रूर होगा। वह मुझसे वह काम जान लेना चाहते हैं। वह लोग जो खुद यहां बेकार बैठे हैं, उनकी नजर में किसी और को बेकार नहीं बैठना चाहिए। यह मैं समझ रहा हूं। तब मैं यहां क्या कर रहा हूं? क्यों आया हूं यहां? यह कोई दार्शनिक सवाल नहीं है। उनकी जिज्ञासा है और मेरे लिए यह सब लिख पाने का बहाना भर। इससे ज़्यादा की मेरी हैसियत नहीं है अभी। इन तीन दिनों में यह तो तय बात है कि उनके रोज़ाना में मेरे लिए कोई जगह नहीं है। हमारे घर भी कोई आता है, तब हम भी बिलकुल ऐसा ही करते। वह अपना रोज़ाना बना सकें, इतना मौका तो उन्हें मिलना ही चाहिए। मतलब, वह मुझे मौका दे रहे हैं। फिर यह जो मौसम है, इसमें ठंड अभी शुरू हो रही है। सबके पास एक-दूसरे के खूब खूब न्योते हैं। कहीं गौना है। कोई बारात जा रहा है। कहीं बहु भोज है। कोई भंडारा करवा रहा है।