सुन्दर क्या है?

यह दोतरफा है. हम सबका किन्हीं मुलायम हाथों की मुलायम उँगलियों को महसूस करने के लिए उस मुलायम वक़्त का इंतज़ार. बार-बार कहने पर भी बाहर आने का नाम न लेती लड़की का इतराना. उस हॉस्टल के बाहर सवा घंटे से पेड़ के तने से सटे हुए लड़कों का इंतज़ार. सब इन्हीं घड़ियों में कहीं छुप जाएगा. वह थोड़ी देर बाद यह सोच कर भी कुछ नहीं कर पायेगा. कुछ वक़्त पढ़ लेते का ख़याल बेमानी है. दोनों अगर ख़ुद को एक दूसरे की तरफ़ खींचने के लिए कुछ करना चाहते हैं, तब वक़्त की कुछ किश्तें यहाँ भी खर्च करनी होंगी. जो जितनी जल्दी जिसके पास आना चाहता है, उसे उतना ही समय निवेश करना होगा. यह सिर्फ़ वक़्त और पैसे की सीमा में सिमटने वाला नहीं है. न ही सिमटता है.

इस ‘सुन्दरता’ के मानक को भी वक़्त की पता नहीं कितनी घड़ियों में कितना वक़्त लगाकर करीने से लगातार गढ़ा जा रहा है. इसका एक मतलब है, उनके यहाँ पेट के सवाल गायब हैं. यह सब भरे पेट वाले लोग हैं. भूखे नहीं है. वह एक-एक पल रुपयों में ख़रीद सकते हैं. खरीदना आधुनिक परिघटना है. यह उतना ही आधुनिक है, जितना ख़ुद को दुकानों के अन्दर ले जाकर वक़्त को पीछे ले जाकर रोक देने की इच्छा.

उनके लिए वह ख़रीदा हुआ समय ख़ुद को चमकने दमकने का एक और मौका है. मौका है, इस तरह सबसे जादा देखे जाने लायक बनने की इच्छा का. वहाँ यह सवाल ही नहीं है कि वह पूँजी, जो उनके माता-पिता ने अपना वक़्त बिताकर इकठ्ठा की है, उसे ख़र्च करते हुए उन्हें कोई जंतर याद आ जाए. यह वही लोग हैं, जिनके लिए पास असीम उपभोग क्षमता है. जिनके पास पैसा नहीं है, वह पेट काट-काट कर इनकी नक़ल करने की अमानुषिक क्रिया में झोंक दिए गए हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि उनके लिए सुन्दर दिखना ज़रूरी है या जिंदा रहना?

हमलोग जो समझते हैं, वह दूर खड़ी लड़की कितनी ‘सुन्दर’ लग रही है, अगली बार उसके पास जाकर पसीने की बदबू कैसी होती है(?) पूछकर देखिएगा. अगर आप लड़की हैं, और कोई लड़का आपको इसी तरह अपनी तरफ़ आकर्षित कर रहा है, तब यह पूछने पर वह अपनी काँख को सूँघकर भी आपको इसका ब्यौरा नहीं दे पायेगा.

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