इश्तिहार वाली औरत
वह खुद नहीं लिखतीं पर अपने पति के लिखे हुए को इश्तिहार की तरह सब दीवारों पर चिपका आती हैं । इससे एक बात तो तय है, वह लिखे हुए को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाती हैं जब वह उनके पति द्वारा लिखा गया होता है। इधर वह लिख भी ख़ूब रहे हैं । जिस तरह से हम बीत रहे समय को अपनी नज़र से गुज़रता हुआ देख रहे हैं, तब उनकी योग्यता बिल्ली या चमगादड़ की तरह जान पड़ती है। वह व्याख्या कर रहे हैं । विश्लेषण में कितने ही तरह के दोहरावों के बाद भी पीछे हट नहीं रहे। वह सामाजिक रूप से चेतस व्यक्ति की तरह बर्ताव करना चाहते हैं । बोलते भी उसी तरह हैं । इसमें दिखता है, वह एक आले दर्ज़े के मर्मज्ञ हैं । इस सबमें अब हम उन्हें अपने समाज में स्थित करने की कोशिश करते हैं, जो समूची वैचारिक प्रक्रिया में अनुपस्थित हैं । यह नेपथ्य किस तरह से उन्हें रच रहा है? अगर हम यहाँ इन जैसे अनलिखे प्रश्नों को देखें, तब हमें क्या मिलता है? रेत। रेत से साने हाथ। क्या हाथ कुछ भी नहीं लगता । ऐसा नहीं है । उस उम्र में जब वह युवती रही होंगी और यह लेखक पति उस ओर आकर्षण महसूस करता होगा, तब के क्षणों को हम अपनी कल्पना से रच सकते हैं? तब एक तय जगह