मैंने कई जगहों से ख़ुद को अनुपस्थित कर लिया है. मेरे जैसे कई लोग और भी होंगे, जो कभी-न-कभी ऐसा किया करते होंगे. यह गायब कर लेना, किसी भी तरह से पलायन नहीं माना जाना चाहिए. यह गायब हो जाना इस समय की सबसे बड़ी चालाकी है. वह सूरज भी तो हर शाम ढलने का बहाना बनाकर अनुपस्थित हो जाता है. कोई उससे तो नहीं पूछता. वह कहाँ चला जाता है.उसके जाने पर ही हम रात होते-होते चाँद को देख पाते हैं. तारें भी आसमान में बिखर जाते हैं. एक का जाना हमें असहज करता है पर प्रकृति में वह एक क्रम है. एक ऐसी व्यवस्था, जहाँ सब एक के बाद एक होने के लिए अपनी तय्यारियों में लगे रहते हैं. सोचता हूँ, तब बहुत सी जगहों पर अब लौटने का मन नहीं करता. एक मन यह भी होता है. इस जगह पर भी आना अब बंद कर देना चाहिए. कोई भी तो नहीं है, जिसके लिए आया जाए. मन एकदम जहर हो गया है इधर. किसी को भी नहीं छोड़ रहा. एक एक कर सबसे बदला लेने के ख़याल से भर जाने के बाद ऐसा होना सहज ही माना जाएगा. किसी ने मेरा कुछ बिगाड़ा नहीं है. कौन किसी का कुछ बिगाड़ पाया है. पर फिर भी मन, उसे ऐसे ही होना है. बेसिर पैर के ख्यालों में डुबोते रहना. तैर मैं कभी नहीं