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आलोक की किताब

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आलोक को उसके यात्रा वृतांत 'सियाहत' के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का 13 वां नवलेखन पुरस्कार दिया गया है। जितनी औपचारिक यह पिछली पंक्ति है, इतनी औपचारिकता आगे कहीं नहीं है । सब चौदह मई के समारोह के बाद लेखक के रूप में आलोक में संभावनाओं को अपने अपने अर्थों में टटोल रहे होंगे । उन्हें वह एक लेखक के रूप में ही मिला होगा । मित्रों और साथियों को छोड़कर सबके लिए हम हमेशा ऐसे ही उपलब्ध होते हैं । यह यात्राओं की पुस्तक जिस समय प्रकाशित होकर आई है, यह कौन सा क्षण है, इसके विषय में कुछ भी कहना नहीं चाहता । हमारी पिछले दो तीन साल पहले की बातों में इसके किसी न किसी ख़ाके की बात हमेशा रहती । कहता, एक किताब तो अब आ जानी चाहिए । तुम सुदूर दक्षिण में हो किसी हिन्दी भाषी को इतना समय एस साथ रहने का अवसर नहीं मिला है । इसका उपयोग करना चाहिए । आलोक ने इस समय का उपयोग इन यात्राओं के लिए किया । वह समय कुछ और था, जब उसने अपनी यात्रा को शुरू किया । उसका प्रेम में होना होना उसके चेहरे पर साफ़ दिख जाता । वह यात्राओं पर भले निकलता अकेले हो पर यहाँ बैठे कुछ दोस्त और दोस्त से बढ़कर कुछ साथियों को उसके कहीं ज्ञात