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हिंदी ब्लॉग की बात

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क्या यह वह दौर नहीं है, जब हम विधा के संकट से जूझ रहे हैं? हिंदी की सतह पर किसी को भी ऐसा कुछ भी होता नज़र नहीं आ रहा होगा. ‘हिंदी की सतह’ माने ‘भाषा का साहित्य’ किसी उधेड़बुन में स्वयं को व्यस्त नहीं कर पा रहा होगा. क्या जितनी भी विधाओं का आविष्कार होना था, वह या तो हिंदी साहित्य का हिस्सा बन चुकी हैं या फ़िर हम उन्हीं खांचों में अपने लिखे हुए को ‘फिट’ करने की गरज से भर गए हैं? जिन्हें आलोचक और समीक्षक कहा जाता है, वह शायद भाषा में हो रहे इन परिवर्तनों को लेकर इतने उदासीन हो चुके हैं कि उनकी नज़र इधर पड़ ही नहीं रही. साल दो हज़ार चार रहा होगा. हिंदी का पहला ब्लॉग कहीं किसी ने बनाया होगा. नाम रखा, ‘नौ दो ग्यारह’. चूँकि ‘ब्लॉग’ थोड़ा तकनीकी और अपरचित सा पद है इसलिए यह बताते चलें कि यह अंग्रेज़ी भाषा के ‘वेब लॉग’ का संक्षिप्त रुप है. तथा इसका सरल सा अर्थ है, एक ऐसी वेबसाइट, जिसे आप ब्लॉगर या वर्डप्रेस के डोमेन (वेब पते) पर अपने मेल अकाउंट की सहायता से कुछ ही मिनटों में बना सकते हैं. साहित्य के समाजशास्त्र में इस घटना को कैसे देखा जायेगा, यह बहुत मुश्किल काम नहीं है. इसे ‘लेखन का लोकतांत

जगह

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क्या किसी भी जगह को हम खाली स्थान की तरह चिन्हित कर सकते हैं ? यदि हाँ तो कब और अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो कब हम ऐसा करने की हैसियत में नहीं होते ? यह सवाल बहुत बड़े हलके में बहस का हिस्सा बना हुआ है । कब, कौन, कहाँ से चलकर किधर आ गया, यह अन्वेषण से अधिक संदेह का विषय बन गया है । यह उस समाजशास्त्रीय प्रश्न की उत्पत्ति भी करता है जिसमें हम किसी स्थान, भाव, स्वाद आदि से निकटता या दूरी बनाना चाहते हैं । यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । लेकिन सिर्फ़ व्यक्ति के स्तर पर । एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति में कुछ ऐसे बिन्दुओं को जान लेना चाहता है, जिससे वह यह तय कर पाये कि भविष्य में उनके संबंध कैसे रह पाएंगे । यहाँ सवाल यह भी उठता है, इसमें किस प्रकार वह संचालित होता है, यह देखने लायक बात होगी । जैसे ही कोई निश्चित भूगोल को अपने लिए एक सीमा मान कर ख़ुद को एक शासन के अधीन लाता है, वह किसी राज्य की उत्पत्ति या उसके जन्म का बिन्दु हो जाता है । जितनी सरलता से एक पंक्ति पहले राज्य नहीं था और एक ही पंक्ति में कुछ ऐसा घटित हुआ कि भूगोल, सीमांकन, राज्य और शासन प्रणाली का उदय होता हुआ दिखने लगा, वास्तविकता