देह
पता नहीं क्यों लगता है, हम सबमें देह का आकर्षण लगातार बढ़ रहा है। एक-दूसरे को आदिम अवस्था में खुलेआम देखने की इच्छा का विस्तार जिस तरह से हुआ है, उसे सिर्फ़ यौनिकता से समझ लिया जाएगा, ऐसा नहीं है। मेरे ख़याल से यह एक धुरी है। इसके चारों तरफ़ सिर्फ़ हम नहीं हैं, हम बर्बर बनने की प्रक्रिया में संलग्न एक इकाई हैं। यह जो कुछ भी है, जैसा भी है, इसमें जिसे हमारी इच्छा बनाया जा रहा है, यह सब इतना भी निर्दोष नहीं है। यहाँ मैं किसी तरह की कोई व्याख्या करने की गरज से नहीं भर गया हूँ, न इसे दक्षिणपंथी राजनीति के एजेंडे का हिस्सा ही समझा जाना चाहिए। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ हम सबको मनुष्य से घटाकर लिंग और योनि जैसे विभाजनों में बाँट देना है। यह कुछ उन भावों के उभरने जैसा है, जैसे हम किसी सवारी गाड़ी में कहीं छिपे हुए स्तनों के बीच की दिख गयी खाली जगह को देखकर संभोग के विचारों से भर जाते हैं। यह जितना शब्दों से अश्लील लग रहा है, उतना इस क्रिया में संलग्न उन दो व्यक्तियों के मध्य हुई उस संधि का एक छोटा सा हिस्सा है, जहाँ उनके सवालों में अभी सिर्फ़ देह की सुचिता के प्रश्नों का अब कोई मूल्य नहीं है। अगर एक-द