अधूरी बातें..
खाली पन्ने : लिखने से पहले खाली पन्ने को देखा है ? सादा । जिसपर कुछ भी न लिखा हो । बिलकुल कोरा । मेरे दिमाग में यह सवाल नहीं आता, अगर इतनी देर तक यहाँ आँख गड़ाकर न देख रहा होता । इस बहुत देर तक देखने के बाद भी कुछ खास दिख नहीं रहा । वह सफ़ेद का सफ़ेद दिखता रहा । पिछले दस सालों का लेखा-जोखा मेरे सामने मेज़ पर पड़ा हुआ है । कुल पंद्रह जिल्द हैं । इसमें कुछ ऐसा वक़्त भी गुज़रा, जिसमें तीन-तीन महीनों में दो सौ पन्नों को भर दिया करता । वह भी क्या गति थी । एकदम करिने से लिखते हुए आप बहुत दूर तक चले आते हैं । एक ऐसे बिन्दु के पास जब आप उन लिखे हुए पन्नों की तरफ़ देखते भी नहीं हैं । ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ ? क्या यह असमान्य सी घटना है या इसमें उस अतीत से भागते रहने और कभी पिछले दिनों पर कभी न लौटने की कोई इच्छा ? अभी कुछ भी दावे के सार्थ नहीं कह सकता । बुदबुदाहट : आज तारीख है, इकतीस जुलाई । साल दो हज़ार उन्नीस । दोपहर दो बजकर इक्यावन मिनट । डेरावाल नगर । बहुत सालों बाद आज वर्ड पर टाइप कर रहा हूँ । मुझे लगता है इसे भी लिख कर रख लेना चाहिए । एक पायरेटिड वर्ड फ़ाइल को ढाई सौ रुपये में इनस्टाल करव