मोबाइल

मोबाइल देखा है? देखा होगा। अगर आप यहाँ तक पहुँच गए हैं, तब ज़रूर देखा होगा। वह अभी अकेले, अपने आप कहीं आते जाते नहीं हैं। हमें उन्हें कहीं-कहीं ले जाना होता है। कभी सोचा है, इस एक आविष्कार के वर्तमान स्वरूप ने किस तरह हमारी दुनिया की रचनात्मकता को क्षति पहुंचाई है? शायद नहीं। आप उसे दूसरी तरफ से देख रहे होंगे। वह सहायक के रूप में उपस्थित है। यह कई वैकल्पिक संसारों को अपने अंदर रच रहा है। यह मौका पड़ने पर कोई भी गाना सुना सकता है । कहीं भी तस्वीरें खींच सकता है। इन दो बड़े कामों से शुरू हुआ यह डिवाइस अब और क्या-क्या कर रहा है?

जबसे इसमें इंटरनेट और एप दोनों आपस में मिले हैं, यह असीमित उपलब्धियों को हासिल कर चुका है। टैक्सी बुक करनी है। ऑनलाइन मेगा स्टोर हैं। सब्जियों से लेकर खाना मंगाना है। रेल हवाई जहाज की टिकट बुक करनी है। छुट्टियों का कोई प्लान बनाना है। कोई खबर पढ़नी है। कोई फिल्म, कोई नाटक देखना है। उसके पिछले भागों को देखना है। किताबें डाउनलोड कीजिये। किसी लड़की या लड़के से मिलना है, पॉर्न साइटों पर जाना है। सेक्स करना है। पढ़ाई करनी है। अगर मोबाइल में डेटा है, यहाँ सब कुछ मिलेगा। जब यह इतना सुविधाओं को ख़ुद में समाये हुए हैं, तब किसी को क्या दिक्कत हो सकती है। एक सर्वर से जुड़कर यह दुनिया के कई सारे बंद दरवाजों को हमारी उंगली के इशारों पर खोल रहा है।

जो पहले अदृश्य था, उसे एक झटके में इसने उघाड़ दिया है। कुछ भी रहस्य बनकर ज़्यादा दिनों तक नहीं रह सकता अगर ज्ञात सर्च इंजन कोई पन्ना खोज कर या बनाकर नहीं ले आता। यह तो एक तरह की पहुँच को सहज बना रहा है। तब तो कोई आपत्ति हो, ऐसा होना नहीं चाहिए। पर ऐसा नहीं है। नेट न्यूटरेलिटी से लेकर ओपन सोर्स के सॉफ्टवेयर के बीच एक खबर आती है, एपल कंपनी जो मोबाइल फोन बना रही है, उस पर एक महिला ने हरजाने में बहुत बड़ी रकम माँगी है। उसके बाद अब कंपनी की तरफ़ से माफ़ी माँगी जा रही है कि वह ख़ुद अपने पुराने मोबाइल फोन की स्पीड को धीमा कर दिया करते थे, ताकि लोग जल्दी से दूसरा फोन खरीदने की इच्छा से भर जाएँ। क्या आपको दोनों बातें जुड़ी हुई नहीं लग रही हैं?

बात बिलकुल साफ़ है। आप ख़ुद एंडड्रॉएड या एपल का फ़ोन इस्तेमाल कर रहे होंगे, तब क्या समझना चाहते हैं। वह सब तो हमारे लिए पहले ही तय कर चुके हैं। हम क्या देखेंगे । कब देखेंगे। कहाँ हमें किस तरह के विज्ञापन को इच्छाओं में बदलने का अवसर चाहिए। एक छोटा सा प्रयोग है। ख़ुद गूगल प्ले पर जाकर गूगल के बनाए एप्लीकेशन देखिये। मौसम, समाचार, खेल। कला, साहित्य, संस्कृति। समाचार, देश दुनिया, आस पास, प्रोडक्टिविटी टूल्स से लेकर वह सब अपनी प्रयोगशालाओं में बना रहे हैं। हमें लग रहा है उसके द्वारा दी गयी ई मेल सेवा मुफ्त है। पर ध्यान से देखिये यू-ट्यूब, यू-ट्यूब किड्स, यू-ट्यूब टीवी, यू-ट्यूब गेमिंग से लेकर गूगल ड्राइव, ब्लॉगर, मैप, फोटोस, कैलेंडर, कीप, क्रोम, क्रोमकास्ट, म्यूजिक, वाईफाई, डे ड्रीम, एंडड्रॉएड वियर, एंडड्रॉएड ऑटो, डॉक्युमेंट्स, गूगल ऑलो, गूगल डूओ, एडसेंस, एडवर्ड्स, एनलिटिक्स, टेंगों, स्कॉलर, कार्डबोर्ड, ट्रिप्स, हैंगआउट, पिक्सल फ़ोन, क्लासरूम, क्लाउड प्रिंट, कैमरा, एक्सप्रेस और भी पता नहीं क्या-क्या बनाकर उसने हमें चारों तरफ़ से घेर लिया है और यह सब बमबारी की तरह बरसा रहा है। अकेला गूगल इतना सब कर चुका है, जिसकी जानकारी हमें है ही नहीं। हो जाने पर भी क्या होगा?

हम तो अभी तक यही समझ रहे हैं, सब हम चुन रहे हैं। लेकिन यह सफ़ेद झूठ से भी ज़्यादा सफ़ेद है। वह हमें अपने मुताबिल गढ़ रहे हैं और हम मजबूर हैं। हमारे पास करने के लिए कुछ खास बचा नहीं है। यह फोन हमारी सुबहों का हिसाब-किताब रखते हैं। हम कितने कदम चले? कितने कदम भागे? रात कब सोये थे? कब जागे? नींद नहीं आ रही, तब आप किसी अप्लीकेशन पर जाकर एक हफ्ते से लेकर महीने भर के कोर्स चुन सकते हैं। बहुत दिन हुए आपने कोयल की आवाज़ नहीं सुनी, अब बस एक क्लिक पर उसकी आवाज़ सुनी जा सकती है। ख़ुद बारिश,पानी, झरने किसी को बचाने की कोई कोशिश अब नहीं की जाएगी। क्योंकि सारी आवाज़ें आपके मोबाइल की एक एप में सुरक्षित रख ली गयी हैं। बस आप जियो, वोडाफ़ोन या एयरटेल किसी का भी डेटा प्लान ख़रीदने लीजिये। नाचना तो उनकी उँगलियों पर ही है। एक वक़्त ऐसा आने वाला है, जब सांस लेने से लेकर संभोग तक आप उनसे पूछ कर करेंगे। यह दिन ज़्यादा दूर नहीं है। आहट नहीं होगी, सीधे उनके कदमों में गिरेंगे। धड़ाम से।

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