बेमतलब

जब हमें लगता है, हम कहीं पहुँचने वाले हैं, तब हम आहिस्ते-आहिस्ते चलने लगते हैं। इसे वस्तुनिष्ठ वाक्य की तरह न लिया जाये, तब इसे किस तरह लिखा जाना चाहिए। उस पहुँचने में एक बार जो पहुँच जाने की हड़बड़ी है, उत्कंठा है, क्या उसे कदमों से मापा जा सकता है? क्या हो जब वह कदम कहीं चलते हुए किसी को दिखाई ही न दें। दिखाई देना, उसके होने का एकमात्र प्रमाण हों, ऐसा नहीं है। मैं कितने ही सालों से कितने हज़ार वर्ग फुट अपने मन में तय कर चुका हूँ। कितनी ही बार उनकी पैमाइश पूरी करने के बाद भी कहीं नहीं पहुँच पाया। यह जितना भौतिक लग रहा है, उससे कहीं अधिक अमूर्त है। अमूर्त होने पर यह किसी को दिखाई नहीं देगा, ऐसा नहीं है। यह चिंतन की तरह एक तरह की विलासिता का अपने मन में निर्माण कर लेना है। यह उन दुखों को बढ़ा चढ़ा कर अपने इर्द-गिर्द ओढ़ लेना है, जिनकी कृत्रिमता अपने से किसी अन्य के छूने पर उसी पल प्रकट हो जाएगी। प्रकट होना, एक तरह से उस तिलिस्म के टूट जाने सरीखा होगा। यह तभी तक मूल्यवान है, जब तक कि इसे सिर्फ़ हम देख पा रहे हैं। दूसरों के देखते ही यह अर्थहीन हो जाएगा। अर्थहीन होना खत्म होना नहीं है, नए अर्थों की तरफ बढ़ गया एक और कदम है। दिखे तब भी। न दिखे तब भी।

इस प्रक्रिया में जो सम्पन्न हैं। जो कई लोगों द्वारा पहचाने जा रहे हैं। जिनके सिर पर छत है। पेट में रोटी है। तन पर तरह-तरह के कपड़े हैं, अगर वह कहें, उन्हें दुख है। यह क्या है? इसकी ध्वनियाँ कहाँ तक जानी चाहिए? जब हम आर्थिक विषमता के सबसे बड़े अंतरों को अपने समाज में हर तरफ़ छितरा हुआ देख रहे हैं, तब मेरे या मेरे जैसे लोगों के दुखी होने की वजहों को अगर नकली या बनावटी कह रहा हूँ, तब इसमें क्या गलत है? मुझे लग रहा है, मेरी बातें बिखर रही हैं। इनका बिखर कर मिट जाना ही ठीक रहेगा। यह जब संभल रही होती, तब ऐसे क्यों होता कि जो कहना चाहता हूँ, उसे छोड़ कर हर बात यहाँ दर्ज़ होने की गरज से खड़ी हो गयी है? यह कई सारी बातों का एक साथ चलते रहना इसकी सबसे बड़ी वजह है।

कल जब उस मुंशी से अगली तारीख़ पूछ रहा होऊंगा, तब उस तारीख़ में मेरे भविष्य की कुंजी बंद होगी। वह बताएगा, मैडम आ रही हैं। रास्ते में हैं। उस कोर्ट में तो वैसे भी सब तारीख़ ले रहे हैं। हम भी ले लेंगे। तब मेरी नौकरी इस तारीख में कैद हो कर रह जाएगी। मैं कहना नहीं चाहता था, पर मुझे लगा, मेरे दुख में उनके मुक़ाबले एक डिग्री का फ़र्क है। उसे बता देना चाहिए। यह बता देना, मेरे लिए उनसे अलगाने की व्यक्तिनिष्ठ श्रेणी का निर्माण भी करेगा। इसे मेरी चालाकी भर न समझा जाये। यह युक्ति है, खुद को उन सबसे अपने आप को बचा ले जाने के लिए।

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