खिड़की का छज्जा

खिड़कियों के बाहर अकसर छज्जे होते हैं. यह उनके लिए छतरी का काम करते होंगे. बारिश में भीगने से उसे बचाते हुए ख़ुद भीग जाना उन्हें अच्छा लगता होगा. ऐसा करके वह खिड़की को भीगने नहीं देते. उन दोनों का ऐसा होना, क्या प्रेम में होने के लिए काफ़ी नहीं है? क्या पता? मैं अभी सोच रहा हूँ, कौन खिड़की है और कौन छज्जा है. जितना दिख रहा है, शायद वह छज्जा तोड़ने वाला नहीं देख पाया. उसने हथौड़ी से उस छज्जे को चकनाचूर कर दिया. वह अभी भी अपनी जगह से सात फुट नीचे जमीन पर बिखरा पड़ा है. वह बिखरते हुए उस खिड़की को निहार रहा होगा. अब खिड़की को छज्जे की ज़रूरत नहीं है. ऐसा खिड़की ने नहीं कहा. किसने सुन लिया, नहीं पता.

छज्जे को खिड़की की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है. अब छज्जे से चार फुट ऊपर छत आने वाली है. खिड़की को वह पूरा ढक लेगा. उस खिड़की को छज्जे कि याद नहीं आएगी. छत छोटी हुई तो क्या हुआ? दोनों में दोस्ती तो हो ही सकती है.

इलाहबाद इसलिए एक ठीक शहर है. खंडहर होता शहर. वहाँ कोई खिड़की और छज्जे को अलग करने नहीं आता. सब उन दोनों को छोड़कर कबसे वापस नहीं लौटे हैं, कोई नहीं जानता.

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