इंतज़ार की आदत

मैं, वहाँ, खिड़की के बिलकुल पास कुर्सी पर बैठे, न अजाने कब से, पौने चार के साढ़े चार में तब्दील होजाने का इंतज़ार कर रहा हूँ. पहले की तुलना में यह इंतज़ार कुछ आसान सा लगा. खिड़की होने से नहीं. उसका अभ्यास होने से. अब कितने ही घंटों का इंतज़ार, मिनटों में ख़त्म कर सकता हूँ. मेरे द्वारा सालों का इंतज़ार, कुछ घंटों में ख़त्म करने की योजना पर काम किया जा सकता है. यह मेरे कुछ ज्यादा इंसान बनने की निशान नहीं, इन बीतते सालों में मेरे अमानवीय होते जाने की याद है. मैं इन सालों में शायद थोड़ा कम इंसान रह गया होऊँगा. इस इंतज़ार को किसी की भी आदत नहीं होना चाहिए. आदत सही चीजों की न हो, तो बड़ी दिक्कत होती है. पर मुझे क्यों नहीं हो रही, समझ नहीं पाता.

ख़ुद को देखता हूँ तब लगता है, मुझमें अरबरी कुछ कम हुई है. अरबरी मतलब एक तरह की हड़बड़ी. अन्दर से कहीं पहुँच जाने की जल्दी. जो अंदर नहीं रहती, प्रकट रूप से सबको दिख जाती है. इस तरह दिख जाना ही इसका सार्वजनिक हो जाना है. शायद अब थोड़ी समझदारी बढ़ी है, या क्या हुआ है, इसे प्रकट रूप में सामने आने नहीं देता हूँ. तब भी क्या होता है, यह सामने दिख ही जाती है. कभी मैं चिल्ला पड़ता हूँ, अपने अन्दर और यह चीख बाहर तक आ जाती है.

फ़िर सोचता हूँ, यह खिड़की सहायक तो रही होगी, पर उससे कितनी देर बाहर देखता रहा. कुछ कह नहीं सकता. बाहर सबकुछ ठीक सा ही रहा होगा. सड़क थी, उसपर भागती गाड़ियाँ थी. उनके अन्दर लोग थे. वही उनकी दुनिया थी. पर सवाल है कितनों के पास अन्दर से बाहर झाँकने के लिए यह खिड़की होती है? यह खिड़की उन सबके लिए नहीं थी. जो वहाँ उस कमरे में बैठे थे. सिर्फ़ हम छह लोगों के लिए ही थी. उनकी खिड़की शायद सामने दिवार पर लगी घड़ी होगी. उसके पति की लग गयी नौकरी होगी. या उनकी अभी दो महीने पहले हुई शादी होगी.

जिस दौर में हम रह रहे हैं, उनमें यह कुछ बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ हैं, जिनके सहारे सब अपने इंतज़ार को कम करने में लगे हुए हैं. हम इसी समय में व्यवस्था से थोड़ी व्यवस्था अपने लिए माँग रहे हैं. कोई हमें दे नहीं रहा है. तीस की उम्र के बाद, वजीफे की रकम से लैपटॉप खरीदकर, उसपर और लिख भी क्या जा सकता है? इससे ज़्यादा समझ नहीं पा रहा हूँ.

टिप्पणियाँ

  1. Sochkr acha lg rha h.... Ye soch kr ki kuch b socha ja skta h....kis cheej ka intjar h.... Kyu h ye intjar... Kb khtam hoga ye injar.... Kyu hote ja rhe h hm amanaviya

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