इन दिनों

दिन बेदम हैं. उनकी जान ठण्ड निकाले दे रही है. वह काम करने लायक नहीं रहे हैं. अभी आज का सूरज पांच बजकर इकतीस मिनट पर डूब जाएगा. फ़िर हम कमरे में ट्यूबलाइट जलाकर बैठ जायेंगे. फ़िर कुछ करेंगे? नहीं. अपने अगल-बगल देखता हूँ, तब दिख पड़ता है, करने के लिए बहुत कुछ है. कल साल के आख़िरी इतवार को ख़रीदे हिंदी अंग्रेज़ी के आठ अखबार हैं. पिछले सात दिनों में घर आई कम से कम इतनी ही पत्रिकाएँ हैं. इन दिनों पर कुछ डायरी में लिखा जा सकता है. तद्भव के नए अंक में राहुल सिंह का लम्बा आलेख ‘कला, आधुनिकता और इतिहासदृष्टि’ पढ़ा जा सकता है. कुछ नहीं तो वेंडी डोनिगर की किताब ‘हिन्दू मिथ्स’ और देवदत्त पटनायक की हिन्दू आख्यानों को समझने के प्रयास में लिखी ‘मिथक’ में साम्य देखा जा सकता है.

कुल मिलकर बहुत काम हैं. पर हो कोई एक भी नहीं रहा है. इसे काहिली कहते हैं या सच में हिलाल हो गया हूँ? नहीं जानता. पर इतना पता है, लोग इससे भी मुश्किल कामों में ख़ुद को रात दिन झोंके हुए हैं. हमने ख़ुद को कहाँ झोंक दिया. यह सवाल पूछा जाना चाहिए. 

क्या ‘पेपर बोट’ की पैक की हुई दस रुपये चिक्की को देख कर कुछ याद आया हो? मालुम नहीं पड़ता. ऐसा तो नहीं के उस सुबह एक के पीछे एकसाथ चार-चार मोरनियों को चलता देख कहीं खो गया हूँ? यह भी नहीं लगता. वह क्यों उन पेड़ों को छोड़ कर यहाँ आ गयीं हैं, यह सिर्फ़ एक अकर्मक प्रश्न की तरह बना हुआ है. इसका किया कुछ नहीं. फ़िर क्या बात हो सकती है? इतने जटिल सवालों की क्या कहूँ, मुझे तो यह भी नहीं पता कि सामने थैली में रखी मूंगफली न खाने की वजह क्या है. होगी कोई. हमें क्या करना? हम तो वैसे भी काम नहीं कर रहे.

ऐसा लग रहा है, जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं है. हो सकता है, ऐसी ही कोई बात हो. जो पता न हो. या जैसे कई बार होता है, कई वजहें सामने होते हुए भी नज़र नहीं आती हैं. जैसे दिवार पर मकड़ी. जैसे एक ढाई हज़ार शब्दों का रफ़ ड्राफ़्ट अभी भी इंतज़ार कर रहा है. उसे भी सुधारना है. एक ड्राफ्ट में कई पन्ने अनुवाद के बाद रुक गए हों जैसे. मेरी फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है. अभी दोबारा ऊपर से नीचे आते हुए लग रहा है, इतने काम तो कभी सिलसिलेवार सोचे भी नहीं थे. यह टाल देने की आदत पता नहीं दीमक की तरह, वक़्त की किश्तों को खाती रही है और सामने होते हुए मुझे कुछ समझ नहीं आता. बस लगता रहता है, यह ठण्ड उन सब रुक गयी चीज़ों की सबसे बड़ी वजह है. इस वजह से कमरे के अन्दर पैरों के आसपास ठंडक है. ज़मीन भी उतनी ही ठण्डी है. यही सब मुझे काम करने नहीं दे रहे.

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