गुम होना

वह ऐसे ही गुम हो गया होगा जैसे कॉमा गुम हो जाते हैं, किन्हीं भारी भरकम पंक्ति के बीच. पंक्ति छोटी भी हो तब भी कभी-कभी अर्द्धविराम कहाँ दिखाई देते हैं. वह भी किसी को नहीं दिखाई दे रहा होगा. वह शायद किसी श्वेतवर्णी अभिनेत्री की गर्दन पर रह गया तिल होगा. एक शाम मेकअप एक्सपर्ट ने क्रीम लगाकर उसे छिपा दिया होगा. अगर वह तिल नहीं है, तब वह इस भीड़भाड़ वाले शहर में कुछ भी हो सकता है. हम चलते हुए भी तो इस शहर में कितनी चीज़ें नहीं देखा करते. बस देखते हैं तो किसी लड़की के कन्धों से झाँक रहे कपड़ों का रंग. किसी की जांघों की मोटाई. उसकी ऊँगली में पहनी हुई अँगूठी. हम बेशर्मी की हद तक जाकर किसी साईट पर जाकर ख़ुद को नंगा करके देख आते हैं.

हमें कहीं नहीं दिखती किसी लड़की के जूड़े में एक भी जूं. दिखती है उसकी माँ की उम्र. दोनों की त्वचा में कोई अंतर न देख मन में गुम होने लगते हैं. कुरेदकर वापस लाते हैं, जो गुम हो गया है. हमें कहाँ दिख पाता है, सड़क पर कोई गड्ढा. हम उसे महसूस करने के एवज़ में परेशान नहीं होते. बस हम उसी गड्ढे में एक रोड़ी होकर, किसी को नहीं दिखना चाहते. लेकिन वह वहाँ से भी देख रहे होते हैं, कमर से नीचे की दुनिया.

वह इन पंक्तियों में जैसे गुम हो गया, वैसे उसी दरवाज़े के बाहर से वह गायब है. उसे सब ढूंढ रहे हैं. वह कहीं हो, तब मिले न. उसकी हैसियत ग़ज़ल के ग़ और ज़ में लगे नुक्ते सी भी नहीं है. गायब होना किसी के लिए कोई घटना नहीं है. गायब होना इतिहास में कोई बात ही नहीं है. हमने उसे एक बिंदु से भी छोटा मान कर गायब समझ लिया है.

वह शर्तिया हमें वापस तब मिल पाता, अगर वह ऊपर आई अभिनेत्री की किसी फ़िल्म का गायब हो गया संवाद होता. वह तब भी मिल सकता था, अगर वह किसी खादी के कुर्ते पहने नेता की डकार होता. वह अगर नहीं मिल रहा है, तब इस दुनिया को उसकी कोई ज़रूरत नहीं है. हम उसे किसी भी चीज़ से देख नहीं पा रहे हैं. एक दिन कोई वैज्ञानिक विज्ञान में उसकी खोज करेगा. कहेगा, वह वाष्प में तब्दील हो चुका है, और फलाना दिन बरस कर वह इस जल तंत्र का हिस्सा बन गया है. हम समाज विज्ञान में कहेंगे, वह अम्लीय वर्षा का हिस्सा था और उसी दरवाज़े पर पड़ी बूँदों से वह दरवाज़ा जंग लगने के बाद टूट गया, जिसे बाद में वहीं से चोर काट कर ले गए और कबाड़ी को बेच दिया. 

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