बात न होना

बात न होने को हम किस तरह ले सकते हैं? सबके लिए बहुत मामूली चीज़ होती होगी. कैसे बिन बताये दो लोग तय कर लेते होंगे कि अब बात नहीं करेंगे? यह दोतरफा है या इसकी कई दिशाएं हैं? कुछ कहा नहीं जा सकता. यह हमारी ज़िन्दगी में एक घटना की तरह है. जिसे हम ठहर कर नहीं देखते. लेकिन वह वहीं कहीं होती है. छिपी हुई सी. जैसे हम बड़े दिन हुए मिले नहीं हैं. मिल लेते तो कह देते. जो तुमने अपने मन में रख लिया है. तुम ऐसे हो तुम फ़ोन पर नाम देख कर भी फ़ोन नहीं उठाते. बजने देते होगे. कोई कितना करेगा? एकबार खीज जाएगा, तब तो बिलकुल नहीं करेगा. पर बात न करना कई धागों को बीच में छोड़ देना है. हो सकता है, कभी मन भी किया हो पर मन के होने से क्या होता है? इस बात न करने को जिन बातों के सहारे बुना होगा, उन पर से पीछे हटने का मन नहीं करता होगा. कैसे अपनी ही बात से पलट जाएँ.

पलट जाना कमज़ोर हो जाना है. फ़िर इन दिनों तब जबकि कई महीनों से बात नहीं हुई है, इसे ऐसे ही चलते देना चाहिए की रट लग जाये तब बचना आसान नहीं होता. चलने दो इसे टेक को. जब तक चले. पर हमें वह क्षण याद कर लेने चाहिए. याद दोहराई नहीं जाती, हम उसको अपने अन्दर दोबारा बनाते हैं, यह जानते हुए भी उन हिस्सों को अपने अन्दर रील की तरह चलने देना चाहिए. के कैसे हम एक दूसरे के दोस्त बने होंगे. दोस्त बनना एक ही सतह पर आ जाने के बाद संभव हुआ होगा. हमने एक दूसरे को बराबर समझा होगा. तब जाकर कहीं पहली बार हम एक दूसरे से बोले होंगे. तुम शायद, 'वक़्त नहीं आया है, याद करने का' की सोचकर अभी अपने से हारना नहीं चाहते होगे.

लेकिन एक बात कह दूँ, यह हार-जीत से ज़यादा उन बातों को बचाए रखना है, जिसमें हम घण्टों बिन सोचे समझे बिताते आये थे. कई जगहों पर वह आवाज़ें आज भी गूँजती होंगी. तुम्हें कभी नहीं लगता, वह बातें छूट जाने से कुछ है जो अन्दर ही अन्दर टूट रहा है. टूटन की आवाज़ भले अभी सुनाई नहीं दे रही हो पर वह अंदर उधेड़बुन किये जा रही है. मई-जून के बाद वह मैं अपने अन्दर सुन पा रहा हूँ. शायद तुम भी उसे महसूस कर रहे हो, पर जताना नहीं चाहते होगे. जब चाहना, बात कर लेना. हम फ़िर वहीं मिल जायेंगे. किसी बात को लेकर. बेबात. घंटों. बेमकसद.

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