वो जो नाक के नीचे होंठ हैं

आज मेट्रो में जामा मस्जिद जाते हुए दिखे वह लड़का-लड़की पता नहीं कब तक याद रहेंगे? लड़का थोड़ा लम्बा था. लड़की थोड़ी छोटी थी. जैसे शहरों में अक्सर जोड़ियाँ बन जाती हैं. साथ पढ़ते-पढ़ते. एक ही दफ़्तर में काम करते-करते. वह दोनों भी कहीं साथ पढ़ रहे होंगे. कुछ देर साथ चलकर थकान कुछ तो कम होती होगी. हम कहें न कहें किसी का संग हमेशा ऐसा करता रहा है. कोई उसे किताब कहे, कोई दोस्त, कोई मोबाइल फ़ोन. सबके अपने अपने नाम हैं.

लेकिन अब जो मैं कहने जा रहा हूँ, दरअसल उसे अपनी याद के स्थायी हिस्से में तब्दील करने की चालाकी भर है. हम जिसे कहना चाहते थे, उसके साथ कुछ देर साथ बैठे रहे और वह उतरे, उससे पहले, हम उतर गए. हम कभी इतने करीब खड़े नहीं हुए कि भीड़ हमें असहज करने लगे. न एकदूसरे में इतने डूबे रह पाए कि भीड़ महसूस ही न हो. फ़िर ऐसा कोई ख़याल लाना बेमानी सा है कि मैं भी उससे कुछ ख़ास लम्बा रहा होऊँगा. न कभी हमारे होंठ इतने करीब थे. वहाँ किसी तरह हाथ का छू जाना भी एक घटना होता, जिसे डायरी में कहीं अपनी स्याही से दर्ज़ कर लेता. कभी किया भी था. बिन हड्डी वाला हाथ.

दोनों चलती हुई गाड़ी में हिलते डुलते इतने पास थे कि जैसे भीड़ भीड़ न होकर उस एकांत का सृजन कर रही थी, जहाँ वह गेट के उस छोटे से कोने में अपने होंठों को एक दूसरे से छुआ पाए. छूना, चूम लेना था. उनकी देह भाषा में यह कोई बड़ा काम नहीं था और वह पहले भी ऐसा कर चुके होंगे. मुझे उनके इस निजी क्षण को इस तरह यहाँ लिखने का कोई हक़ नहीं है. ऐसा आप सोच सकते हैं. पर दिमाग का क्या करूँ(?), जिसमें कहीं-न-कहीं यह सवाल घूमता रहता है कि क्या यही हिम्मत तब कुछ काम आएगी, जब लड़के के यहाँ उसकी अम्मा अपनी बहु पसंद कर रही होगी और एक छोटी-मोटी नौकरी के बूते पर यह लड़का, लड़की के साथ किन्हीं सपनों को पूरा करने की हसरतों से भर जाएगा. ऐसा कभी हुआ, तब क्या लड़की आज की तरह लड़के के लिए घर में कोई स्पेस बना पाएगी?

पता नहीं, यह देह का आकर्षण हमें किस तरह रच रहा है. हमें पता होता, तब भी क्या कर लेते? हो सकता है, कभी इसे मेरी यौनिकता का एक ख़राब हिस्सा भी कहा जाए. कोई कहना चाहेगा. पर कह नहीं पायेगा.

टिप्पणियाँ

  1. Shachinder... mere mutabik aur mere apne jehen ko is lekh ne jo khushi di hai (thoda swarthi ho chala hun) us ko aadhar bana kar mera yeh manna hai ki yeh aapka survottam lekh hai :) Bahut bahut shukriya :)

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    1. पता नहीं तुम्हें माँसलता क्यों पसंद है. इसमें कोई ऐसी बात नहीं कही कि तुम उसके प्रति अनभिज्ञ हो. शायद उसका कहा जाना इस तरफ़ ले आया होगा. भाव इससे भी गहरी चीज़ है. इसमें कौन सा हिस्सा तुम्हारी पसंद को इतना पसंद है तब हम तुम्हें भी और जान पाएंगे.

      बात को अन्यथा मत लेना. बस ऐसे ही मन किया तो कह दिया.

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  2. "जब लड़के के यहाँ उसकी अम्मा अपनी बहु पसंद कर रही होगी और एक छोटी-मोटी नौकरी के बूते पर यह लड़का, लड़की के साथ किन्हीं सपनों को पूरा करने की हसरतों से भर जाएगा. ऐसा कभी हुआ, तब क्या लड़की आज की तरह लड़के के लिए घर में कोई स्पेस बना पाएगी?" is par spashtikaran chauhnga... hum mil kar bhi baar kar sakte hain :)

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    1. अरे इतनी स्पष्टता से तो वहाँ लिखा है. साफ़ साफ़. कि जब इन दोनों लड़का लड़की के यहाँ शादी की बात चलेगी, तब इन दोनों की यह हिम्मत क्या रूप लेगी? क्या दोनों इसी तरह अपने यहाँ एक दूसरे के लिए स्पेस या जगह बना पायेंगे. मेरे लिए देखने लायक यह सामजिक घटना होगी.

      मिलोगे, तब भी मैं यही कहूँगा.

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