उदासी

उदासी दिखने में कैसी होती होगी? शायद आँसू की तरह होती होगी. तरल. गीली. उदास-उदास. अन्दर तक भिगो देने वाली. जैसे वह कहीं मिट्टी की छोटी-सी दिवार बनाते हुए अपनी आँखों में पानी आते देख अंगोछे से उन बादलों को हटा देते होंगे, जैसे इधर तुम करती हो शायद. खिड़की पर परदा लगा. अन्दर बैठी. गुमसुम. कभी न कभी हम सब ऐसे होते होंगे. उस एहसास को छू कर देखते होंगे. अन्दर से बाहर आते हुए उसका रंग और सुर्ख हो आता होगा. जैसे तुम्हें देखकर मेरे गाल हो आते हैं. मैं हमेशा उस माँ की तरह उदास हो जाना चाहता हूँ, जो उन नए दूध के दाँतो के इंतज़ार में उदास है. उन पौधे की जड़ों की तरह कमज़ोर महसूस करना चाहता हूँ, जिन्हें रेशे-रेशे मिट्टी लेकर अभी-अभी ज़मीन से बाहर निकाल लिया गया है. उनमें भी कहीं दर्द भरा होगा. बिछुड़ने का. अकेले होने का. टूट जाने का. कभी इस ख़याल से भर आता हूँ कि रोज़ पेट से निकलती उन सारी बच्चियों की तरह अपने शरीर पर माँ के आँसुओं और उसके खून की गर्माहट लिए अपनी साँसों को समेटते हुए कूड़े के ढेर में पड़ा रहूँ. उस तरह भी होना चाहता हूँ, जैसे शादी के बाद तुम होती गयी हो. असल में मैं तुम होना चाहता हूँ.

इसतरह, उदास होना, अपने भीतर संभावनाओं को फ़िर से उगने देना है. यह उगना उस मन के गीलेपन से ही होता होगा. गीलापन हमारे अन्दर नमी को बचाए रखने की आख़िरी लड़ाई है. वरना गीला तो पानी भी होता है.

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