गाँव का बदलना
इस बार दो साल बाद आने पर भी कल से न जाने अपने मन के अंदर कितनी बार और मन से कितनी बार बाहर दोहरा चुका हूँ कि इस बार बारह दिन जो लेकर आये हैं, लग रहा है कितने जादा दिन हैं. यह भी कहता फ़िर रहा हूँ कि मन करता है जैसे कल का ही टिकट होता तो कितना अच्छा होता. पता नहीं यह क्या है? पर यह ऐसा ही है. ऐसा नहीं है, गरमी इस बार कुछ अलग है या इस गरमी से डर लगता है. अभी भी जब इधर पंखे से दूर इस मेज़ पर लिखने बैठा हूँ तो पसीने से तरबतर हूँ और कोई ख़ास फ़रक नहीं पड़ रहा.
पर फ़िर भी यह जताना कि दो साल पर आने के बावजूद कुछ चीज़ें हैं जो छूटी हुई लग रही हैं. अजीब नहीं है. लग रहा है, हमारे मन में जो गाँव था, उसकी दरकती हुई ज़मीन कुछ रास नहीं आ रही. सतह पर तो नहीं पर कहीं अन्दर उसकी चोट गहरी है. चोट ऐसी जो किसी को नहीं दिख रही. दर्द की बात तो जाने दो.
पर फ़िर भी यह जताना कि दो साल पर आने के बावजूद कुछ चीज़ें हैं जो छूटी हुई लग रही हैं. अजीब नहीं है. लग रहा है, हमारे मन में जो गाँव था, उसकी दरकती हुई ज़मीन कुछ रास नहीं आ रही. सतह पर तो नहीं पर कहीं अन्दर उसकी चोट गहरी है. चोट ऐसी जो किसी को नहीं दिख रही. दर्द की बात तो जाने दो.
निम्बू पानी को यह लोग नहीं बचा पाए. घरों में फ्रिज़ का आना ख़ुद को कम ग्रामीण बनाता होगा पर हम मूल्यों से भी बदल रहे हैं. कल जैसे ही मास्टर जी ठंडा खरीद कर लाये और उनका लाना उन्हें इतना सहज लग रहा था उन्हें कि बस उसका कोई जवाब नहीं. गाँव अब पुराने वाले गाँव नहीं रहे. इतनी सरलता से कही उनकी बात के पीछे कितने निहितार्थ हैं, हम कभी जान भी नहीं सकते. समझने के लिए रुकना ज़रूरी है. रुकना कोई नहीं चाहता.
बिजली का मतलब पढ़ाई-लिखाई के लिए ढिबरी की जगह टेबल लैम्प का आ जाना नहीं है. वह सारे उत्पाद जो उस बिजली से चलते हैं वह धीरे-धीरे अपनी जीवनशैली भी ला रहे हैं. 'सोनी मिक्स' पर दिखता 'अजहर' का ट्रेलर. बहराइच में 'कुमार पिक्चर पैलेस' के लिये लायसिंग का ही तो काम कर रहे हैं. फ्रिज में रखा ठंडा पानी. बोतल में रखी कैम्पा. इसकी शुरुवात टीवी से शुरू हुई होगी. या बहुत पहले रेडियो से ही. इन किस्सों को दोबारा समेटने और पड़ रहे असर को रेखांकित करने की ज़रूरत है. अखबार और मोबाइल की पहुँच ने इसे दूसरी तरह से प्रभावित किया है.
बिजली का मतलब पढ़ाई-लिखाई के लिए ढिबरी की जगह टेबल लैम्प का आ जाना नहीं है. वह सारे उत्पाद जो उस बिजली से चलते हैं वह धीरे-धीरे अपनी जीवनशैली भी ला रहे हैं. 'सोनी मिक्स' पर दिखता 'अजहर' का ट्रेलर. बहराइच में 'कुमार पिक्चर पैलेस' के लिये लायसिंग का ही तो काम कर रहे हैं. फ्रिज में रखा ठंडा पानी. बोतल में रखी कैम्पा. इसकी शुरुवात टीवी से शुरू हुई होगी. या बहुत पहले रेडियो से ही. इन किस्सों को दोबारा समेटने और पड़ रहे असर को रेखांकित करने की ज़रूरत है. अखबार और मोबाइल की पहुँच ने इसे दूसरी तरह से प्रभावित किया है.
इसके साथ कुछ और भी हो रहा है. जैसे अभी सड़क किनारे आम के पेड़ पर से कच्चे आमों से अपना झोला भरता हुआ आदमी कितने आत्मविश्वास से कह रहा था, सरकारी पेड़ से भी नहीं तोड़ने देंगे? कभी वक़्त रहा होगा, जब बगिया से तोड़ते हुए इन सबकी हड्डियाँ तोड़ी जाती होंगी. इस एक सरल वाक्य कें कितने सालों का इतिहास झलक रहा है. तभी कह रहा था आम इतना सरल फ़ल नहीं. इसे विखंडित करने पर न जाने किन भावुक क्षणों के साथ कौन-कौन सा इतिहास उघड जाये?
(डायरी में चौदह मई, दोपहर के खाने से पहले. लगभग एक बजे.)
(डायरी में चौदह मई, दोपहर के खाने से पहले. लगभग एक बजे.)
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