वर्धा के लिए निकलते हुए

साढ़े तीन के लगभग हम सब रेल में अपनी-अपनी जगह व्यवस्थित हो चुके होंगे। हम सब वर्धा जा रहे हैं। ऐसे ही कुछ काम है। काम सिर्फ़ एक बहाना है। दरअसल हम एक नयी जगह को इतनी पास से देखने का मौका गँवाना नहीं चाहते थे। टिकिट आरएसी से कनफर्म होने में जितना भी वक़्त लगा, हम यही सोचते रहे बस किसी तरह से हो जाए। हम एक दिन फ़ालतू लेकर चल रहे हैं। थोड़ा घूम लेंगे। गाँधी कुटीर। नयी तालीम का विद्यालय। सब। अभी हम कुल आठ लोग हो गए हैं। दो और हैं जो बंगलोर राजधानी से जा रहे हैं। उन्हें नागपुर से अस्सी-नब्बे किलोमीटर का सफ़र बस से तय करना होगा। 

लेकिन पहुँचेंगे सब कल सुबह ही। बीस घंटे के सफ़र के बाद हम सब थक जाएँगे। हम ऐसा नहीं सोच रहे। गर्मी बहुत है वहाँ। समर और संदीप कहते हैं, वहाँ दो ही मौसम होते हैं। गर्मी और ख़ूब गर्मी। हम इस पहली वाली गर्मी की किश्तों में पहुँचेंगे। वह धीरे-धीरे बढ़ रही है। दिल्ली से सात डिग्री का फ़र्क था कल। यहाँ हम तीस पर थे दोपहर और वहाँ ग्यारह बजे अड़तीस डिग्री तापमान में सब तप रहा था। यह रुक्का बहुत पहले लिख लिए जाने की माँग कर रहा था। पर अभी डेढ़ बजे, यहाँ घर से निकल रहा हूँ। भागम भाग में सब कुछ इकट्ठा करके लिखने में भी कुछ छूट जाता है। हम बस दिल्ली को दो तीन दिन के लिए छोड़े जा रहे हैं। कल रात ओले पड़ने के बाद थोड़ी ठंड बढ़ गयी है। देखते हैं, जब हम लौटेंगे तब इसमें कितना उतार चढ़ाव रहता है। अभी तो बस भाग रहे हैं। खाना खा लूँ। हमारे यहाँ से नौ सौ छियासठ सीधा जाती है, निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन। आज इतवार दोपहर, बदली के साथ यहीं तक।

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