पदानुक्रम

शायद यह एक गलत शब्द हो और जो मेरे अंदर भाव अभी है, उसे यह ठीक से अभिव्यक्त भी न कर पाये। इसके बावजूद अभी मुझे यही सूझ रहा है। अगर ऐसा हुआ भी तो कोई बात नहीं हम इसे आगे भी बदलने नहीं जाएँगे। मैं बस यह हिसाब लगाना चाहता हूँ। जो मेहनत है, उसे किस तरह दूसरों को दिखाया जा सकता है? इस दूसरे में ख़ुद भी हूँ, जो श्रम करते हुए उसे महसूस करना चाहता हूँ। थोड़ा और सरल करूँ, तब वह खेतिहर मज़दूर दिख जाता है, जो बंधुआ है । बेगार कर रहा है। किसी के मातहत है। उसने किसी तस्वीर की तरह दिखते खेत को जोता और फिर उसमें गेंहू के बीज बो दिये। क्या छह महीने के बाद वह फसल के पकने के बाद उसे बेच पाएगा? इसके किसी जवाब तक पहुँचने से पहले हम यह भी ठीक ठीक देख लें, जिस मौसम में वह गेंहू की फसल चाहता है, वह मौसम कौन सा है। मेरे साथ यह मौसम ही कुछ ठीक नहीं चल रहा। सब अपनी मेहनत को किसी और रूप में परिवर्तित करने में महारथ हासिल किए हुए हैं। थोड़ा सा आटा गूँदा, फ़िर उसे बेला और ठीक ठाक गोलाई में आने के बाद तवे पर रोटी बन गयी। मेरे पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिसमें इन बीतते दिनों को अपने से बाहर किसी को दिखा सकूँ। यह मेरी असमर्थता है। एक क़िस्म की कमज़ोरी मान लीजिये। अगर सिर्फ़ मान लेने से काम चल जाता, तब तो क्या बात होती। यह जो घंटों खाली सा दिखता हुआ इस कमरे में बैठा रहता हूँ, उसका हासिल ही कभी-कभी मुझे नहीं मिल पाता। यह मुझे उस रूप में नहीं मिल पाता, जिस रूप में सब देखने के अभ्यस्त हैं। उनका यहअभ्यास ही सबसे बड़ी बाधा है। 

वह सब जो मुझसे बाहर हैं, और 'मैं' नहीं हैं, उन मिनटों को किन्हीं ऐसी आकृतियों में देखना चाहते हैं, जिसका कोई मूल्य भी हो। यह इसका व्याप्ति दोष हैं। यह सिर्फ़ इतनी सी बात है, जिसे समझा नहीं सकता। इस लिखने से इन खाली हिस्सों को जितना भी भरता रहूँ, यह किसी भी तरह से मासिक उपलब्धि में परिवर्तित नहीं हो सकते। यह इनकी असफलता नहीं है। यह अपने समय से, जिस समाज में सब भौतिकवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं, उससे काफ़ी पहले यह उस सीमा से ख़ुद को बाहर निकाल लाये थे। यह सीमातीत होकर उनकी पकड़ में तो बिलकुल नहीं आएंगे, जो उन्हीं रूपों में, उन्हीं औज़ारों से अपना दिन रचते हैं। यह किसी से बहस के बाद, या किसी स्थिति में लगातार घिरे रहने के उपरांत की गयी थोथी या भोथरी टिप्पणी नहीं है। इसका हासिल सिर्फ़ इतना ही है कि जिस तरह इस व्यवस्था ने श्रम को देखने और उसे हासिल होने वाले बाह्य उत्पाद की सामाजिक हैसियत से ही उस व्यक्ति को पदानुक्रम में ऊपर या नीचे स्थान दिया, वही समस्याग्रस्त है। देख लीजिये, वह बिल्लियाँ जो घर के बाहर घर के चूहों को खा रही हैं, उनसे अलग घर की महिलाओं की स्थिति क्या है। इन दिनों वह भी अपनी अवस्थिति या 'पोजीशनिंग' को लेकर कुछ ऐसा सोचता रहा है।

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