रात
रात जाने के लिए ही क्यों होती है? सब रात को ही क्यों जाते हैं? क्या वह उन जगहों को रात में कम देख पायें इसलिए वक़्त के उन क्षणों में से ख़ास तौर पर चुनते हैं? कुछ समझ नहीं आता. उन्होंने भी रात को चुना. अँधेरा. सब अपने में छिपा ले जाने वाला. उतना ही दिखता है, जितना दिख सकता है. जब मुझे पता चला, वह आज रात जा रहे हैं, सामने आने की हिम्मत नहीं हुई. हिम्मत गलत शब्द है, शायद इसे साहस जैसे किसी अन्य पर्यायवाची से बदला जाना चाहिए. मैं उनका सामना नहीं करना चाहता था. फ़िर भी कमरे से बाहर निकल गया.
उसने मुझे देखते ही बुला लिया. वह मुझसे कुछ छोटा है. फ़िर भी बुला लिया. मैं उनमें से हूँ जो उनकी संगत से हमेशा गायब रहता. फ़िर भी उसने बुलाया और चला आया. रात के बारह बज रहे थे. फ़्रिज सबसे पहले इस दो मंजिले से नीचे ले जाना था. डबल डोर. आदमकद.
हम पांच लोग उन संकरी सी सीढ़ियों के बीच उसे नीचे ले जाने की कोशिश में लगे थे. वह शायद उनकी तरह जाने से मना कर रहा था. दो बार उन मोड़ों पर मुड़ नहीं रहा था. कैसे उसे वहीं हवा में नहीं छोड़ सकते, यह पता चलता रहा. धीरे धीरे ठण्ड चाँद से धरती पर पहुँचती रही. तीन बज चुके थे. सड़क एक दम खाली थी, जब उनका टेम्पो गेट से चला गया.
ठीक से एक कमरा भी नहीं था. अब उसमें से आधा नए जीने में चला जाएगा. हम लोग जहाँ रहते हैं, उस संस्था के पास पैसे की कमी नहीं है. वह जितना चाहे पैसा बर्बाद कर सकती है. उसके लिए स्मृतियाँ मूल्यवान नहीं हैं. कैसे उस छोटी सी जगह पर वह छह लोग बिखरे हुए थे, कोई नहीं जान पायेगा. दो दीवान थे. उनमें कुछ-कुछ सामान था. कोई अलमारी नहीं थी. एक लकड़ी की टूटी हुई पानी में हर साल भीगती सिल गयी अलमारी थी. उसके लिए घर में नहीं घर के बाहर छज्जे के नीचे जगह थी. उसी में पुरानी किताबें रही होंगी. वह इस जगह को अपने सपने में देखा करेंगे. वापस आने को होंगे. नींद टूट जायेगी. उठेंगे, पानी गिलास में डालकर पियेंगे. गरमी में इस छत पर टहलते हुए वह कभी टहल नहीं पायेंगे. कभी कभी याद आयेगे, कुछ तो यहीं छूट गया है.
अभी पीछे उनकी अम्मा को बुखार था. उतर नहीं रहा था. वह भी कहीं पीछे के दिनों में डूब गयी होंगी. मेरी याद के हिस्सों में वह पहले जैसी थीं, उससे भी कमज़ोर लग रही हैं. छूटना सबसे ज़्यादा उन पर असर कर गया है. मुस्कुराती हैं तो लगता है, मुस्कुरा नहीं रहीं, जैसे कह रही हों, कोई उन्हें यहाँ से जाने से रोक ले. आँखें अन्दर ही धँस गयी हों जैसे. उन्हीं की आँखों से यह अँधेरा रात बनकर चारों तरफ़ फ़ैल गया है. उन्हें दिन में भी रात दिखाई देती होगी. ऐसे ही रातें आती जायेंगी और बारी-बारी यहाँ से सब निकलते जायेंगे. उसी में एक रात होगी, हम भी जा रहे होंगे. यह जाना एक नयी रात की तरफ़ जाना होगा. उसके लिए इस सपने से निकल कर जाना होगा.
उसने मुझे देखते ही बुला लिया. वह मुझसे कुछ छोटा है. फ़िर भी बुला लिया. मैं उनमें से हूँ जो उनकी संगत से हमेशा गायब रहता. फ़िर भी उसने बुलाया और चला आया. रात के बारह बज रहे थे. फ़्रिज सबसे पहले इस दो मंजिले से नीचे ले जाना था. डबल डोर. आदमकद.
हम पांच लोग उन संकरी सी सीढ़ियों के बीच उसे नीचे ले जाने की कोशिश में लगे थे. वह शायद उनकी तरह जाने से मना कर रहा था. दो बार उन मोड़ों पर मुड़ नहीं रहा था. कैसे उसे वहीं हवा में नहीं छोड़ सकते, यह पता चलता रहा. धीरे धीरे ठण्ड चाँद से धरती पर पहुँचती रही. तीन बज चुके थे. सड़क एक दम खाली थी, जब उनका टेम्पो गेट से चला गया.
ठीक से एक कमरा भी नहीं था. अब उसमें से आधा नए जीने में चला जाएगा. हम लोग जहाँ रहते हैं, उस संस्था के पास पैसे की कमी नहीं है. वह जितना चाहे पैसा बर्बाद कर सकती है. उसके लिए स्मृतियाँ मूल्यवान नहीं हैं. कैसे उस छोटी सी जगह पर वह छह लोग बिखरे हुए थे, कोई नहीं जान पायेगा. दो दीवान थे. उनमें कुछ-कुछ सामान था. कोई अलमारी नहीं थी. एक लकड़ी की टूटी हुई पानी में हर साल भीगती सिल गयी अलमारी थी. उसके लिए घर में नहीं घर के बाहर छज्जे के नीचे जगह थी. उसी में पुरानी किताबें रही होंगी. वह इस जगह को अपने सपने में देखा करेंगे. वापस आने को होंगे. नींद टूट जायेगी. उठेंगे, पानी गिलास में डालकर पियेंगे. गरमी में इस छत पर टहलते हुए वह कभी टहल नहीं पायेंगे. कभी कभी याद आयेगे, कुछ तो यहीं छूट गया है.
अभी पीछे उनकी अम्मा को बुखार था. उतर नहीं रहा था. वह भी कहीं पीछे के दिनों में डूब गयी होंगी. मेरी याद के हिस्सों में वह पहले जैसी थीं, उससे भी कमज़ोर लग रही हैं. छूटना सबसे ज़्यादा उन पर असर कर गया है. मुस्कुराती हैं तो लगता है, मुस्कुरा नहीं रहीं, जैसे कह रही हों, कोई उन्हें यहाँ से जाने से रोक ले. आँखें अन्दर ही धँस गयी हों जैसे. उन्हीं की आँखों से यह अँधेरा रात बनकर चारों तरफ़ फ़ैल गया है. उन्हें दिन में भी रात दिखाई देती होगी. ऐसे ही रातें आती जायेंगी और बारी-बारी यहाँ से सब निकलते जायेंगे. उसी में एक रात होगी, हम भी जा रहे होंगे. यह जाना एक नयी रात की तरफ़ जाना होगा. उसके लिए इस सपने से निकल कर जाना होगा.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें