कैसा होना?

वह अन्दर से भरा हुआ है. आने वाला कल उसमें भर रहा है. कल एक सपना है. वह उसी कल की कल्पनाओं में खो गया है. वह बता नहीं रहा है. वह चींटी की तरह अपनी महक छोड़ रहा है. हमें बस चींटी बनकर उन गंधों के सहारे उसकी अनकही बातों को समझने की कोशिश में जुट जाना है. ऐसा नहीं है, वह बता नहीं सकता. वह वही कर रहा है, जो कभी हमने भी किया होगा. वह वैसे भी सब न बताते हुए भी सब बता चुका है. जो वह शब्दों में नहीं कह पाया है, वह सब आने वाली गर्मियां कह देंगी. यह पहली बात नहीं है, जो उसने हमें नहीं बताई है. उसने अपनी नौकरी वाली बात नहीं बताई.

कल कोई अप्रैल आएगा. तब उसकी शादी का कार्ड भी आ जायेगा. हम उसे देखेंगे. पढ़कर कुर्सी या मेज़ जहाँ जगह होगी, रख देंगे. हम बचपन से साथ हैं, यह बात अब नहीं दोहराई जानी चाहिए. यह अब दुहाई देने जैसा लगने लगता है. इसके लिए उसे कुछ नहीं कह रहा. अपने अन्दर इसी वजहें खोज रहा हूँ. यह नहीं कह सकता बगल में रहते हैं तो हमें सब बातें पता होनी चाहिए. निजता जैसे आधुनिक मूल्य के मद्देनज़र उससे कुछ पूछ नहीं रहा. बस थोड़ा सा टूटने की कोशिश में यह सब दर्ज़ किये चल रहा हूँ. किसे फ़रक पड़ता है, मेरे कहने से? मुझे.

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