दिनांक

बचपन से हर दिन को हमने किसी ख़ास संख्या से जाना. स्कूल जाने का सबसे बड़ा फ़ायदा यही होता है. आप समझने लग जाते हैं. यह कितने दिनों का महिना है. साल में कितने महीने होते हैं. यह गणितीय विभाजन सिखाने की सबसे सरल युक्तियों में से एक है. पर हमें किसी अध्यापक ने इस तरह नहीं समझाया. समझाया तो किसी भूगोल के मास्टर ने भी नहीं कि हम जाने-अनजाने इस पृथ्वी पर रहते हुए एक साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेते हैं. यह साल अपने इस कैलेण्डर का दो हज़ार सत्रहवाँ चक्कर लगाने में इस बार एक सेकेण्ड की देरी करने जा रहा है. ऐसा किन्हीं वैज्ञानिकों के हवाले से किसी अखबार ने बताया. इतिहास हमें बताता है, साल सत्रह सौ बावन से यह (संशोधित) ग्रेगोरियन कैलेण्डर अंग्रेज़ों द्वारा उपयोग में लाना शुरू किया. तब उनके पुराने कैलेण्डर से ग्यारह दिन गायब हो गए थे. हम सन् उन्नीस सौ सैंतालिस से पहले तक उन्हीं के उपनिवेश रहे. हम भी अपने सार्वजनिक जीवन में इन्हीं तारीखों को व्यवहार में लाते हैं. हमारे पास अपने दिनों का हिसाब-किताब रखने की जो तकनीकें रही होंगी, उनका क्या हुआ(?) उन्हें भी इतिहास की कोई  किताब अपने अन्दर सहेज कर रखे हुए होगी. हमें सिर्फ़ दो सौ साठ साल पीछे ही तो जाना है. हम कभी पहुँच जायेंगे. एक दिन.

इन ठोस तथ्यों के बाहर हम कैसे हैं? क्या हम कभी इन तारीखों के जंजाल से बच सकते हैं? तारीखें किसी याद के लिए ज़रूरी संकेत नहीं है. वह उससे पहले एक शोषण का औज़ार है. यह तारीखें क्यों गढ़ी गयी होंगी? वह समाज कभी रहे होंगे, जिनकी ज़िन्दगी में इन तारीखों की कोई ज़रूरत नहीं होती होगी? वह शायद मौसमों से अंदाज़ लगा लेते होंगे? क्यों कोई इन्हें याद रखें? इस प्रकृति ने सैकड़ों संकेतों से हमें संपन्न किया है. यह तारीखें न होतीं, इन तारीखों को कैलेण्डर में समेटने वाले न होते, तब देखते हमारी ज़िन्दगी कितनी मुश्किल में पड़ती? 

सचकहूँ तब मेरे पास शायद अपनी याद की कोई तारीख़ असल में याद हो. हमारी माँ को ख़ूब तारीखें याद हैं. कहीं उन्होंने लिख कर नहीं रखी हैं. पर बता देंगी, बीना की शादी वाले साल किस दिन नानी नहीं रही. हम इस साल गर्मियों में ग्यारह साल बाद ननिहाल गए. यह भी मम्मी ने बताया. दुःख शायद ऐसा कर दिया करता होगा. मेरे पास वह क्षण कहीं डायरी में लिखे हुए मिल जाते हैं. मेरे पास यह लिखना है, जो मेरे अन्दर किसी ख़ास तारीख को समेट कर रख देता है. पन्ने याद न भी रहें, तब भी कुछ याद रह जाता है. वरना यह लिखना भी किसी काम का है बला.

{तस्वीर मैक्सिको के सन पिरामिड की है. कभी जाना नहीं हुआ. कभी हुआ तो जायेंगे.}

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