गुलमोहर का सपना

कभी किसी ऐसी चीज़ का इंतज़ार किया है, जिसको कभी देखा ही न हो. आलोक और मेरा इंतज़ार बिलकुल ऐसा ही है. हम लोग दो हज़ार ग्यारह से सपना देख रहे हैं. कोई जगह होगी जहाँ हम ख़ुद को देख सकेंगे. यह सपने हमने विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन पर साथ देखने शुरू किये. कुछ अलग तरह की जगह बनायेंगे. पर उसे जगह नहीं कहेंगे. यह हमारा दीवान होगा. जिसमें हम अपने-अपने हिस्से लेकर छिप जायेंगे. हमारा छिपना किताब में छपने की तरह होता। इसे हम अब ला रहे हैं. इसे हम छू सकेंगे। देख सकेंगे। कह सकेंगे। इसकी बातें सुन सकेंगे।

यहाँ तक पहुँचना इतना आसान नहीं है. कितनी ही बार आलोक के केरल से आने के बाद हम घंटो कहीं बैठकर नक्शा बनाते। नाम सोचते। कैसे उन लोगों से मिल सकते हैं, जिन्हें हम लिखने के लिए कह सकेंगे। कैसे यह और दूसरी लिखने-पढ़ने वाली जगहों से अलग होगी, इसके लिए अभी भी हम बहुत सचेत हैं. बड़ी सावधानी से कहना बताना पड़ता है, किस तरह हमारा गुलमोहर बन रहा है. गुलमोहर एक कल्ट बने, यह इसके न होने से बहुत पहले ही हमने तय कर लिया है इसलिए हम अपने कहे हर वाक्य को लेकर बहुत सावधान हैं. यह हम सिर्फ़ दावे करने के लिए नहीं कह रहे. हमारी कोशिश है, उसे हम जिस शक्ल में अपने सपनों में बनता देख रहे हैं, उतना वह सच में उतर भी आये. इनसे बनने की पूरी प्रक्रिया में अब तीन-चार सदस्य हमारी कोर कमेटी में हैं (उनसे पूछा नहीं है, इसलिए उनके नाम नहीं दे रहा). यह जिस तरह से अब आकार ले रहा है, उसमें जितने हम हैं, उतने ही भागीदार वह भी हैं.

यह बहुत अलग मिज़ाज़ की जगह है, जिसे अब वेबसाइट कहने का मन भी नहीं कर रहा. इसके लिए यह बहुत पुराना टर्म है. हम कुछ नया ढूंढ़ रहे हैं. हो सकता है यह अपनी मुक्कमल शक्ल में आने के लिए कुछ वक़्त और ले पर हम प्रायोगिक तौर पर इसे अगले हफ़्ते तक उतारने की कोशिश कर रहे हैं. देखते हैं, अगले सोमवार तक हम कहाँ पहुँचते हैं? शुरवाती तौर पर यह इसका बीटा वर्ज़न होगा। यह मूलतः ख़ुद को जताने की जगह है. हम किन-किन तरहों से ख़ुद को व्यक्त कर सकते हैं. इसकी सीमाओं को हम टटोलना चाहते हैं. अभी हम लिखकर, न लिखकर, तस्वीरों में, आवाज़ों में खुद को कह रहे हैं पर इसके आगे क्या? यह इसी सवाल से शुरू हुई जगह है.

यह हमारे उन दिनों का सपना है, जब पैसे क्या होते हैं हमें पता भी नहीं था, ऐसा नहीं है। लेकिन पैसे बहुत मेहनत से आते हैं, यह ज़रूर पता है. अगर हम आज इसे खड़ा कर पा रहे हैं, तब हम समझते हैं, यह काम दो तीन साल पहले हो जाना चाहिए था. पर जेब का खाली होना, हमारे सपनों पर पैबंद नहीं दीमक की तरह उन्हें कुतर रहा था. इस बात का लिखा जाना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यह कहीं न कहीं हमें बताता रहेगा, हम कहाँ से शुरू हुए हैं. हमें जहाँ जाना है, उसे यहाँ बताने का कोई मतलब नहीं है. वह जैसे जैसे दिमाग से निकलकर सामने आता जाएगा, सब जान जाएंगे यह गुलमोहर से है. गुलमोहर डॉट कॉम सिर्फ़ एक वेब पता भर नहीं है, कइयों के सपनों का पता बनने वाला है. इंतज़ार कीजिये कब हम ऑन एयर होते हैं. यह तो सिर्फ़ उसकी पहली आहट है. आहिस्ते से.

{हमारे गुलमोहर का पता है: gul-mohar.com. वहाँ अभी एक पैराशूट है. बादलों के बीच. गर्म हवा से उड़ता हुआ. }

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