सालगिरह मुबारक

यह हम दोनों के बीच की बात है। इसमें किसी तीसरे को आने की कोई ज़रूरत नहीं है। यह हमारा दिन है। हम तय करेंगे, इस दिन किन यादों को अपने भीतर उतरने दें। यह बहुत निजी स्मृतियों में वापस लौटते वक़्त ठहर जाने का क्षण है। सबकी अपनी यादें होंगी, उनमें खो जाने के अपने तरीके होंगे। हम भी अपनी युक्तियों को साझा बनाने की प्रक्रिया में हैं। जब दिल यहाँ धड़के, साँस वहाँ फेफड़ों में भर जाये। पता नहीं ऐसा क्यों हुआ कि आज लिखना कागज़ पर चाहता हूँ पर वहाँ शब्द आ नहीं रहे। यहाँ इन झूठी बातों के पीछे भी कोई बात होगी। कोई ऐसी बात जो झूठी नहीं होगी। उसे कागज़ पर कह देता तो ठीक रहता। कागज़ बहुत अजीब लग रहा है आज। पर छोड़ो, जाने दो। कह नहीं पाया।

कह देना हरबार ज़रूरी नहीं होता। ज़रूरी होता है, उसे तुम तक पहुँचा देना। सुबह कह दिया था। अभी फ़िर वहाँ लिख दिया। दिन तारीख़ वक़्त दोहरा कर कभी वापस नहीं आते, हम उन तक लौट कर जाते हैं। जैसे-जैसे शाम शाम ढलती रही हम एक-दूसरे के पास पहुँच रहे थे। 

यहाँ बस तुम्हें इतना ही कहना है। सालगिरह मुबारक!!

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